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चाँद

आज फिर नभ में खिला है एक पूरा चाँद ,
पर तुम्हारे बिन लगा मुझको अधूरा चाँद,
बादलों के बीच करता है चहलकदमी ,
नापता है जिंदगी की ढेर सी दूरी ,
उम्र जिस आइने में देखती चेहरा ,
बस उसी आइने सा लगने लगा है चाँद//
मुश्किलें हैं ढेर सी पर प्यार भी तो है ,
कोई माने या न माने,फर्क क्या पड़ना ?
रोज इक सपना नया गढ़ना नए दिन में ,
बस पड़ोसन की हंसी सा जग रहा है चाँद//
चूड़ियों की खनखनाहट के नए मानी,
शब्द कोशों में भला कैसे मिलेंगे यार?
प्यार की पहली पहेली बुझनी होगी ,
सच, इन्ही हालात से तो डर रहा है चाँद//
+गुनगुनाता सृष्टि के प्रारंभ से वह गान,
जबकि मानव ने धरा पर आंख थी खोली,
बोलता तो था  पर न उसमे था कोई भी अर्थ ,
पर समझ ,सब कुछ समझता लग रहा है चाँद//
रोज गलियों से गुजरती ,इक किशोरी सा ,
आज भी खुद को परखता ,देखता तो है ,
भावना के ज्वार में बहना बहुत आसान,
इस लिए कुछ आज डगमग लग रहा है चाँद//



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चाँद

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