"सच को झुठलाने की हिम्मत हम कहाँ तक करते, आखिर खुली आँखों के खाव्बों की हिफाज़त ही हम कहाँ तक करते…. कोई होता तो कुछ कहते भी, आखिर अकेले हे हम शिकायत कहा तक करते…. न कोई एहसास न जज़्बात न धड़कन रही उसमे बाकि, आखिर एक पत्थर से मुहब्बत भी हम कहाँ […]
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