---- पण्ड्ति जी आँखें मूँद,बड़े मनोयोग से राम-कथा सुना रहे थे और भक्तजन बड़ी श्रद्धा से सुन रहे थे। सीता विवाह में धनुष-भंग का प्रसंग था- पण्डित जे ने चौपाई पढ़ी "भूप सहस दस एक ही बारा लगे उठावन टरई न टारा " - अर्थात हे भक्तगण ! उस सभा में "शिव-धनुष’ को एक साथ दस हज़ार राजा उठाने चले...अरे ! उठाने की कौन कहे.वो तो ... तभी एक भक्त ने शंका प्रगट किया-- पण्डित जी ! ’दस-हज़ार राजा !! एक साथ ?
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