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बूँद बूँद नीर नयन


बूँद बूँद नीर नयन,
बरसने को तरसे,
पलकों की कोरों पे,
रह  गए क्यों थम के.

लाज शर्म, रिश्ते-नाते,
और संस्कार....
खुशनुमा-से शब्दों की,
बेड़ियाँ हज़ार.

अंतर्मन की अथाह वेदना,
कितने भंवर बनाये,
नारी होने का एहसास,
इसमें गोते लगवाए.

इसी व्यथा की एक लहर
फिर साहिल पर ले आये,
मधुरस्मित छलके लब पर,
और अंतर सिसका जाए.





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