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राजस्‍थांनी बाबत

साहित्य-कर्म मेरे लिए जीने का तरीका है : नंद भारद्वाज —– यहां यह उल्लेख कर देना अप्रासंगिक नहीं होगा कि इस सर्जनात्मक अभिव्यक्ति के लिए मेरा मन अपनी मातृभाषा राजस्थानी में अधिक रमता है। यद्यपि अभिव्यक्ति के बतौर हिन्दी और राजस्थानी दोनों मेरे लिए उतनी ही सहज और आत्मीय हैं और दोनों में समानान्तर रचनाकर्म […]

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