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अरे “शिट” आखरी सिगरेट भी पी ली ...


सुनों छोड़ो चलो अब उठ भी जाएँ
कहीं बारिश से पहले घूम आएँ

यकीनन आज फिर इतवार होगा
उनीन्दा दिन है, बोझिल सी हवाएँ

हवेली तो नहीं पर पेड़ होंगे
चलो जामुन वहाँ से तोड़ लाएँ

नज़र भर हर नज़र देखेगी तुमको
कहीं काला सा इक टीका लगाएँ

पतंगें तो उड़ा आया है बचपन
चलो पिंजरे से अब पंछी उड़ाएँ

कहरवा दादरा की ताल बारिश
चलो इस ताल से हम सुर मिलाएँ

अरे “शिट” आखरी सिगरेट भी पी ली
ये बोझिल रात अब कैसे बिताएँ


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