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किसी के दर्द में तो यूँ ही छलक लेता हूँ ...


हज़ार काम उफ़ ये सोच के थक लेता हूँ
में बिन पिए जनाब रोज़ बहक लेता हूँ  

ये फूल पत्ते बादलों में तेरी सूरत है
वहम न हो मेरा में पलकें झपक लेता हूँ

कभी न पास टिक सकेगी उदासी मेरे
तुझे नज़र से छू के रोज़ महक लेता हूँ

हरी हरी वसुंधरा पे सृजन हो पाए 
में बन के बूँद बादलों से टपक लेता हूँ

तमाम रात तुझे देखना है खिड़की से
में चाँद बन के टहनियों में अटक लेता हूँ

मुझे सिफ़त अता करी है मेरे मौला ने
सुबह से शाम पंछियों सा चहक लेता हूँ

यही असूल मुद्दतों से मेरा है काइम
ख़ुशी के साथ साथ ग़म भी लपक लेता हूँ

तमाम अड़चनों से मिट न सकेगी हस्ती
में ठोकरों से ज़िन्दगी का सबक लेता हूँ

सितम हज़ार सह लिए हैं सभी हँस हँस के
किसी के दर्द में तो यूँ ही छलक लेता हूँ


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