मील के पत्थर थे ये जलते रहे
कुछ मुसफ़िर यूँ खड़े जलते रहे
पास आ, खुद को निहारा, हो गया
फुरसतों में आईने जलते रहे
कश लिया, एड़ी से रगड़ा ... पर नहीं
“बट” तुम्हारी याद के जलते रहे
मग तेरा, कौफी तेरी, यादें तेरी
होठ थे जलते रहे, जलते रहे
रोज़ के झगड़े, उधर तुम, मैं इधर
मौन से कुछ रास्ते जलते रहे
प्रेम टपका, तब हुए ना, टस-से-मस
नफरतों की धूप मे जलते रहे
गल गया जीवन, बिमारी लग गई
शामियाने शान से जलते रहे
लफ्ज़ ले कर उड़ गईं कुछ तितलियाँ
ख़त हवा में अध्-जले जलते रहे
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