सपने कितने गरीबों के टूटे होंगे
तुमने जब अपने वादे को झुटलाया होगा...
तुमने जब नौकरियों को भी छुपाया होगा
बेरोजगार भी तो तुम्हे याद आया होगा....
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तुम्हारा सरकार में आना भी ज़रूरी था..
वादे भी ज़रूरी थे वादों को तोड़ना भी ज़रूरी था...
ज़रूरी था कि तुम विकास करते
मगर फिर
जनता को मूर्ख समझना भी ज़रूरी था...
बताओ याद है तुमको
वो जब पुरानी सरकार से बेहतर खुद को बताया था...
चलती हुई सरकार को तुमने मेरे वोटों से गिराया था...
वो जब कहते थे कि तुम गरीबों के लिए ही चुनाव लड़ते हो...
किसानों की बदहाली से निपटने का हर औजार तुम रखते हो...
मगर अब याद आता है
वो वादे थे महज वादे
किये वादों ही वादों में मुकरना भी ज़रूरी था...
तुम्हारी विजय गाथा की किताबों में
हार का पन्ना भी ज़रूरी था...
वही हालात किसानों की
वही लूट कचहरी थानों की....
मगर मजे में तुम हो
मगर ऐसी में तुम हो...
बेरोजगारी जितनी थी उतनी है
गरीबी जितनी थी उतनी है..
मिली है टूटती उम्मीदें
हम खिलौना थे खिलौना है सियासत के
तुम्हें सरकार में लाकर भी
हम फिर भटके फिर लटके
मगर लटके तो याद आया....
चुनाव भी ज़रूरी था...
तुम्हें आईना दिखाना भी ज़रूरी था...
ज़रूरी था कि तुम विकास करते
मगर फिर
जनता को मूर्ख समझना भी ज़रूरी था...
#ApsAbhishek