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December 1st, 2012

"हवाओं ने साथी बदल लिया है। अब वे सर्द चादरों के साथ चलेंगी। अब सुबह उजाले की जगह ओस और धुंध फैला करेंगे। पत्ते ठिठुर कर सूख़ जायेंगे। धूप में वो तपिश नहीं होगी। अब बच्चे गुनगुने धुप में सेके जायेंगे। माँ को चिंता लगी है। मुन्ने को ठण्ड लग गयी तो? रोज़ सरसों, लहसुन और लाल तेल से मालिश होगी। घरो में रजाई , कम्बल , चादर निकल चुकी है। लकड़ियों का भी इंतजाम हुआ है। कोयले काफी महंगे हो गये हैं। गीली लकड़ी
से काम चला लेंगे। थोडा धुआं ही होगा न? अरे अच्छा है जी कम से कम कछुआ छाप की तो ज़रूरत नहीं पड़ेगी! सारे मच्छर भाग जायेंगे। चाय की चुस्कियों में दिन गुज़रा करेंगे। राजू ने तोह आज नेसकैफे की 2-2 रूपए की कॉफ़ी की पुडिया भी लायी है। चाय का मज़ा दुगुना हो जायेगा। बाबूजी घुघनी और पकौड़े के शौक़ीन हैं। शाम को जब तिवारी अंकल के साथ चाय के चुस्कियों के बीच घुघनी और पकौड़े परोसे जायेंगे , तोह बाबूजी का मूड बन जायेगा। तब शायद राजू की स्कूल न जाने की अर्जी सुनी जा सके। ये सब कुछ होगा। सारी बातें होंगी। भारत मैच जीतेगा। कोई नेता घोटालों में लिप्त पाया जायेगा। कोई फिल्म रिलीज़ से पहले रोक दी जाएगी। कोई आम आदमी केस हार जायेगा। किसी बेगुनाह को सज़ा हो जाएगी। कहीं कुछ गलत होगा। कहीं कुछ अच्छा होगा। और इन सब के बीच एक वो इंसान होगा जिसके पास शायद एक 100 रूपए का कम्बल नहीं होगा। वो इंसान होगा जिसके पास खांसी की दवाई नहीं होगी। ठण्ड की मार से वो हर एक कोई इंसान दर्द में होगा। और उस कोई इंसान को सुनने और देखने वाला कोई नहीं होगा। क्यों हो भला? हमारा काम थोड़े ही है। इन सब के लिए तो हमने आदमी रखे है। हर 5 साल पे बदल भी देते हैं। काम हमारा करती है और फिर भी सरकार उन्हें ही कहते हैं। ये तोह उनका काम है। हम तोह भई मॉडर्न लोग हैं। बहुत काम होता है हमें। ग्लोबल ज़माना है। दुनिया से कदम मिलाना है हमें। अगल बगल देखेंगे तोह आगे नहीं बढ़ पाएंगे। "

ज्यादा नहीं बोलना चाहता। बस अगर कोई रिक्शा वाला या फिर कोई भी बेसहारा दिखे तोह एक कम्बल की कीमत पूछ लीजियेगा। शायद आपके एक कम्बल और थोड़े से प्यार से उसे इंसान पसंद आ जाये।

जय हिन्द।



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December 1st, 2012

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