साये ये रात के साये,
कहाँ ले आए हमें ये रात के साये,
घनेरे कलेरे डरे डरे से ये घबराये,
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ओड़ चादर फटी ये ठुकराये,
ये साये रात के…
बिना बात कभी पीछे पड़े,
धुआँ उड़ाते, चेहरा छुपाते, लड़खड़ाते,
गिरते गिरते से, सम्भलते से, डगमगाते,
दूर से झाँकते, क़रीब आ सो जाते,
हाय ये राते के साये…
एक सच को छिपाए हुए,
बिन बुलाये ये आये हुए,
एक मरियल लकीर से, फ़क़ीर से,
भूख से लिपटे, कालिख से चिपटे,
ये काले काले साये…
आमने, सामने, घूमते गोल गोल,
कभी बैठे, कभी खड़े, मुँह खोल,
जैसे अभी ये जाएँगें निगल,
वो पहली किरण, इनका आख़िरी शंड़,
और रह जाती ना जाने वाली, काली रात…
हाय, ये काली के रात के साये…