जब कोई शौक, आदत बन रोजमर्रा की जरुरत का स्थान ग्रहण कर ले फिर ये बड़ी हानि पहुँचाती है। देश के सबसे बड़े भाई, नरेन्दर जी द्वारा देशी और अंतराष्ट्रीय सार्वजनिक मंचो से वर्णित चायवालों की ग़रीबी और पिछड़ेपन की गाथा से प्रभावित होकर भारतियों ने चाय संग कुछ तगड़ी किस्म वाली जुड़ाव स्थापित किया हैं। नुकसान-फायदे से इतर कुछ भक्त, भक्ति में रम कर दिन की शुरुवात से लेकर रात के अंधियारे तक खूब गरमा गरम चाय की प्याले गटकते हैं।
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हे बड़का साहेब जी के मितरो और भाइयों-बहनों, प्रतिदिन अत्यधिक चाय के सेवन की आदत द्वारा हम नींद-चैन खोकर पेट में एसिडिटी बढ़ा भूख मिटाओ अभियान का सूत्रपात करते हैं। साथ ही हड्डियों के जोड़ों में दर्द, दाँतों का पीलापन, अवसाद, तनाव आदि बीमारियाँ को उसी तरह आमंत्रित कर रहे हैं, जैसे 2014 के आमचुनाव में यूपी के भईया लोगों ने मोदीजी को गुजरात से आमंत्रित कर बनारसी बेटू बना दिल्ली भेजा था।
प्रधानमंत्री मोदी जी ने विभिन्न मंचो से अपनी गरीबी व रेलवे स्टेशन पर चाय बेचने की कहानी को खूब भुनाया हैं। निसंकोच प्रधानमंत्री जी की कहानी काफी प्रेरणादायक हैं। परन्तु वर्तमान परिदृश्य में नैतिक मूल्यों की तिलांजलि दे चुके स्टेशन पर चाय बेचने वाले आर्थिक व संघटनात्मक बाहुबल में काफ़ी सम्पन्न हो चुकेचायवालों को देखकर कई दफा संदेह होता हैं। IRCTC द्वारा वर्णित दर सूची के अनुसार Rs. 5 वाली 150ml वाली चाय में ये चायवाले 50 से 60ml की कटौती कर प्रधानमंत्री चाय कर लगाकर Rs. 10 से Rs. 15 के स्वघोषित भाव में चिल्ला-चिल्लाकर गुंडई के संग बेचते हैं। स्टेशन और ट्रेनों में बिकने वाली गुणवत्ता की पराकाष्ठा को लाँघ चुकी चाय…! OMG प्रत्येक घुट आपको घुट-घुट कर मारने के लिए पर्याप्त हैं।
घर, मित्रों के मध्य चाय पीने, पीलाने और बनाने में प्रसिद्ध मेरा जैसा एक्सपर्ट दावे के साथ कह सकता हैं कि स्टेशन और ट्रेनों में बिकने वाली चाय की लागत Rs. 3.5 प्रति कप से अधिक नहीं होगी। तो भाइयों और बहनों, ये राफेल से भी बड़ा महाघोटाला हैं की नहीं ?, हैं की नहीं ?, हैं की नहीं ? चायवाले चौकीदार को जवाब देना चैये कि नहीं ? चैये कि नहीं ? चैये कि नहीं ?
दूसरी ओर जाति धर्म संप्रदाय की बेडियों से मुक्त माटी धर्मी, त्याग और तपस्या की प्रतिमूर्ति, बंजर मिट्टी से सोना उत्पन्न करने की तपस्या कर देशवासियों की पेट की आंग को बुझाते-बुझाते देश का किसान, राजनितिक पार्टिओं के आकाओं के महलों में उबल रहे चाय की उष्णता में तपकर राख होता जा रहा हैं। तपती धूप, कड़ाके की ठंड तथा मूसलाधार बारिश में पीढयों से शोषित व संघर्षशील किसानों को आजकल 2022 के सपने बेचे जा रहे हैं।
वर्तमान परिपेक्ष्य में देश को चाय पिला-पिलाकर बतकही करते हुए स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने वाला चायवाला नहीं अपितु स्वयं नून भात खाकर देशवासियों का अन्न, फल, साग, सब्जी, दूध आदि से पोषित करने वाला किसान प्रधानमंत्री चाहिए। यदि हमारा किसान राजा पप्पू और मोटा भाई टाइप का कोई डिग्री-विग्री धारी न हो तो भी कोई शिकायत नहीं, क्योंकि किसान कभी उद्योगपतियों के इशारों पर धरती में लोहा ठोककर बरगत पीपल आम अमरुद का बागान नहीं उजाड़ सकता।
देश का दुर्भाग्य नहीं तो क्या कहे, देश के लिए खाद्यान उत्पादन में अपनी देह-मांस गला रहा कोई किसान अबतक 2019 में चायवालों की स्टेशन वापसी व पप्पुओं की घर वापसी के लिए खेत-खलिहान से निकल नेतृत्व की बागड़ोर अपने हाथो में नहीं लिया हैं।
बस प्रकृति बची रहे, देश ऊंचा रहे।
©पवन Belala Says 2018
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