२०वी शताब्दी के अंतिम दशक में पले-बड़े युवाओं ने राष्ट्पति के रूप में कलाम और प्रधानमंत्री के रूप में वाजपेयी जी के दिव्य नेतृत्व में भारतीय राजनीति का स्वर्ण काल जीया हैं। हमारे झारखण्ड राज्य के गठन कर्ता शिल्पकार अटल जी के प्रति, हम झारखंडियों में अपार श्रद्धा हैं।
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राजधानी दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में भर्ती पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की तबीयत नाजुक बनी हुई है। अपनी भाषणकला, मनमोहक मुस्कान, वाणी के ओज, लेखन व विचारधारा के प्रति निष्ठा तथा ठोस फैसले लेने के लिए विख्यात 93 साल के वाजपेयी लंबे वक्त से बीमार हैं और 2009 से व्हीलचेयर पर हैं।
रह-रहकर कल रात से आ रही खबरों और अफवाहों से विचलित मन में एक डर वाली अपराधबोध सी हो रही हैं। मन ही मन को दिलसाओं के संग बहला रहा हूँ कि कुछ नहीं होगा मेरे नेता को। वो एक बार फिर उठकर कोई नया कविता पाठ सुनाएंगे, एक बार फिर दहाड़ेंगे जयचंदो और गद्दारो पर….
आकाश से बरसती बूंदो के संग खुद को सराबोर कर रहा हूँ, उनकी रचनाओं में…
ठन गई!
मौत से ठन गई!
जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई।
मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं।
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ,
लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ?
तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ,
सामने वार कर फिर मुझे आज़मा।
मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का सफ़र,
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर।
बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं।
प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला।
हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए।
आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,
नाव भँवरों की बाँहों में मेहमान है।
पार पाने का क़ायम मगर हौसला,
देख तेवर तूफ़ाँ का, तेवरी तन गई।
मौत से ठन गई।
स्वास्थ्य संघर्ष से विजय हेतु प्रार्थना…जय हो… जिंदाबाद !