जानती हो, बहुत गुस्सा आता हैं आजकल हमको। बहुत… मतलब बहुत…बहुत ही ज्यादा। तुम्हारे विरह के आग में सुलग सुलग कर धधकते मन को करता हैं कि ससुरी बेवफ़ा जमाने को फूक दे और फिर खुद को भी।
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कुछ याद भी हैं तुमको, आज पूरे 12 महीने हो गए गपियाये…यानी पूरे1वर्ष। लास्ट वो पिछली ईद पर मुबारकबाद दी थी मैंने और तुमने मेरे लिए स्पेशल अपने हाथों से बनी सेवई लाने का वादा किया था।
आज फिर एक ईद, बिना किसी को गले लगाकर मुबारकबाद दिये बीत गई। और फिर… न तुम आई और न ही गाढ़ी मिठी दूध में डुबकी लगाकर बैठे सेवई के लच्छे। आज हम फिर छत के एक कोने पर पलथी मार बैठ कुंठित मन से गुनगुना रहे हैं…
कसमे वादे प्यार वफ़ा सब
बातें हैं बातों का क्या
कोई किसी का नहीं ये झूठे
नाते हैं नातों का क्या
कसमे वादे प्यार वफ़ा…
“पवन, समझा करो यार..! बहुत ही अच्छे दोस्त हो तुम मेरे..सबसे अच्छे दोस्त!” अपनी हकलाते रूआंसी आवाज में कहते हुए तुमनें मुझे गले लगा लिया था उस दिन। साफ-सुथरे आकाश तले, एक दूजे को अपनी बाहों में जकड़े ही थे कि मेरे शर्ट की बाहों में कुछ पानी की बूंदों के बूंदाबांदी वाली नमी सी महसूस हुई। बादल विहीन नभ तले हुए इस नयन जल को महसूस कर मैं भी अपने आँखों में उमड़ी-घुमडी जलधारा को पलकों में बांध नहीं पाया।
“नही बनाना मुझे अच्छा-वच्छा, तुम्हारे बिना.. नहीं बनना… नहीं बनना।” एक बार फिर मैं गिड़गिड़ाते हुए ज़िद्दीयाते हुए तुम नासमझ को समझाने की कोशिश कर रहा था। “नहीं बनना तुम्हारा bff, कोई दोस्त वोस्त नहीं मानते। तुम मेरी हो, बस…मेरी।” और तुम एक थप्पड़ सा मेरे गाल पर रशीद कर जोर-जोर से रोते हुए चल पड़े थे।
तुम मुझसे बेखबर हो, मैं रोज दुआएं करता हूँ।
आंखों में अपनत्व की चाह लिए, हर ख़ुदा की इनायत करता हूँ।
महजबी चोलाबाजी की भर्त्सना कर, महादेव जी से शिकायत करता हूँ।
कातर चक्षुओं से तुम्हारी खोजबीन कर, एहसास साँसों में करता हूँ।
अगर तू-तू होती, अगर हम-हम होते के गीतों में, दर्द विरह का गुनगुना कर आंसू बहाता हूँ।
©पवन बेलाला 2018
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