मेरे इस नये घर की बगिया
धीरे-धीरे अपने अन्दर समेट रही है
मेरे हर पीछे छूटे हुए घर की खुशियों और यादों को
हर बार जब गमलों की मिट्टी खंगाली जाती है
तो कुछ मिली जुली मिट्टी हर गमले के हिस्से में आती है
कुछ मिट्टी मेरे प्रिय देहरादून की
कुछ शांत स्वर पहाड़ों के
कुछ सुरीले गीत वादियों के
कुछ उन्मुक्त हँसी मेरे बच्चों के बचपन की
कुछ अवसाद युक्त व्यथा उस समय के एकाकीपन की
कुछ मिट्टी रंगीले जयपुर की
कुछ गुलाब के फूल सी रूमानियत गुलाबी शहर की
कुछ सिहरन पैदा करता रोमांच रेगिस्तान का
कुछ खिलखिलाहटें मेरे बच्चों और उनके सखाओं की
कुछ गौरव प्रेम और निष्ठा से संवरे हुए खूबसूरत घर का
मेरे इस नये घर की बगिया की ये मिली जुली मिट्टी
धीरे-धीरे बिखेर रही है
मेरे घर में बहने वाली बयार में
मेरे हर पीछे छूठे हुए घर की
मिली जुली खुशी, मिला जुला अनुभव और मिला जुला सफ़र
© April 2018 Sapna Dhyani
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