वाल्मीकि । डाकू से महर्षि तक का सफर रत्नाकर जिस किसी को भी लूटता, वह व्यक्ति उसे रोता, गिड़गिड़ाता, भयभीत होता ही दिखता। आज उसने एक अजीब साधु देखा था, जो उससे बिल्कुल भी नहीं डरा। इस साधु ने तो एक शब्द भी अपनी प्राणरक्षा के लिए नहीं कहा बल्कि उल्टा उपदेश दे रहा है। उसके निष्ठुर हृदय को कभी […]
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