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कहीं भ्रष्टाचार सचमुच समाप्त न हो जाए -नवभारत टाइम्स में प्रकाशित मेरा व्यंग्य

शहर के कुछ कमीशनखोर डाक्टरों ने संकल्प लिया है कि वे भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ेंगे । उधर वकील कह रहे हैं कि वे सच्चाई और ईमानदारी से कार्य करेंगे । भगवान जाने कि वे वकालत करने जा रहे हैं या पुरोहिताई । कल तो और भी मजेदार वाकया हुआ , रसद और पंजीयन विभाग के बाबू अन्नाए हुए थे । उन्होंने संकल्प लिया कि अब से वे एक पैसा घूस नहीं देंगे । बाद में बातचीत करने पर पता चला कि वे भी भ्रष्टाचार से त्रस्त हैं । घूस लेने वाले को घूस देना पड़े तो अंतरात्मा को बहुत कष्ट होता है । इसलिए भ्रष्टाचार विरोधी इस मुहिम में वे भी जुड़ गए हैं। ऐसे लोगों का कहना है कि करप्शन लोकल लेवल पर चलता रहे तो कोई बात नही । लेकिन उसका कलमाडी और राजा संस्करण घातक है अर्थात् मेगा एडीशन बंद होना चाहिए उससे तो लाखों करोड़ों की हानि होती है ।

कल एक रिटायर्ड अधिकारी जी मिल गए । मैं उनका भव्य अतीत जानता था । नौ सौ चूहे खाय बिल्ली हज को चली वाला हाल है उनका । कहने लगे अन्ना के आन्दोलन से उनके दिल का बोझ काफी हल्का हो गया है । शायद अब समाज में थोड़ी इज्जत बन सके । मैंने कहा – क्या फर्क पड़ता है भाईसाहब ? आपने अपनी काली कमाई से पहले भी समाज के चंदे की खूब रसीदें कटायी हैं । जाने कितनों के हाथ पीले कराए हैं , जाने कितनों का मोतियाबिंद हटवाया है । समाज का दिया चंदा तो पारसमणी के समान जिसके स्पर्श से समस्त काली कमाई सोने की तरह पवित्र और पुण्य हो जाती है । वे हंसे और हीं.हीं करते हुए अनशन स्थल की तरफ रवाना हो गए । जिधर देखिए लोग अन्नाए पड़े हैं । हर एक ने तख्ती लगा रखी है कि – मैं अन्ना हूं । पुलिस की लाठी की फटकार से भागने वाला शख्स भी स्वयं को अन्ना बताता है । एक चौराहे पर शहर के नामीगिरामी बिल्डर और माफिया सरगना की फोटो लगी है कि मैं अन्ना हूं , हम सब आपके साथ हैं ।

मुझे ये सब तमाशा देखकर हंसी कम , दुख ज्यादा होता है। कि एक पवित्र विचार या आंदोलन कैसे गलत हाथों में पड़कर अपनी गरिमा खोने लगता है । इन सब दृश्यों को देखकर मेरी गति तो केशव कही न जाय का कहिए जैसी हो जाती है । बहुत से फौजी या ब्यूरोक्रेटस सेवानिवृत्ति के बाद भी अपना जीवन उसी अंदाज में जीते रहते हैं । यदि कोई प्रौढ़ा अपने को करीना समझने लगे तो आप क्या कर लेंगे । स्वप्न देखना और गलतफहमी पालना हर मनुष्य का मौलिक अधिकार है । इसके भरोसे ही तो एक आम भारतीय अभावों के रेगिस्तान में भी अपनी नाव खेता रहता है । तो आप किसी को अन्ना होने से कैसे रोक सकते हैं । सभी अपने को अन्ना कहने में लगे हैं । भ्रष्ट पुलिस अधिकारी से लेकर , कामचोर शिक्षक नेता तक , मिलावटी व्यापारियों से लेकर शोषक निजी स्कूल संचालक तक । जैसे मानों अन्ना के इस अभियान में डुबकी लगाने से उनके समूचे पाप धुल जाएंगे । लेकिन चलो इससे कुछ दिन तो देश को भ्रष्टाचारियों से राहत तो मिलेगी । इन विभूतियों का इतना त्याग क्या कम है ? कल श्रीमतीजी के लेडिज क्लब के अन्नाने का दिन है । वे सुबह-शाम का खाना नहीं बनाएंगी तथा अनशन पर बैठेंगी ।

मैं क्या कह सकता हूं पूरे देश में ऐसी ही बयार चल रही है । ज्यादा टोका-टाकी करने पर वे भी मायके जाने की धमकी देने लगती हैं । करप्शन मिटाने की सनक में उन्होने दूधवाले से पंगा ले लिया कि दूध में पानी बहुत मिला रहे हो , सही दूध लाओ वरना तु्म्हारी शिकायत कर दूंगी । अगले दिन से दूधवाले ने आना ही छोड़ दिया । अब मैं सुबह-सुबह उठ कर भैंसों के तबेले तक का मार्च करता हूं । अपने अन्नाने के चलते पत्नीजी ने कॉलोनी के सफाई कर्मचारी को जा धमकाया कि वो नियमित सफाई किया करे तथा कामचोरी न करे । नतीजे में वो मोहल्ले भर का कचरा मेरे घर के आगे इकट्ठा करने लगा है और काम अलग छोड़ दिया है । अब मेरे घर का प्रवेश द्वार देश की व्यवस्था की तरह सड़ रहा है । और मैं एक अदद जनलोकपाल बिल के इंतजार में बैठा हूं कि बिल पास हो जाने दो फिर एक-एक को देख लूंगा । सारा करप्शन मिटा डालूंगा । ड्रोन विमान की तरह भ्रष्टाचारियों को चुन-चुन कर मारूंगा । क्यों साहब क्या लग रहा है आपको , क्या मैं भी अन्नाने लगा हूं । लेकिन सोचता हूं कि यदि देश से सारा करप्शन मिट गया तो हमारे रिटायर्ड नौकरशाह और न्यायमूर्ति क्या करेंगे । इन आयोग वगैरहों का क्या होगा । सुविधाभोगी कैसे पिछले दरवाजे से आगे जाएंगे । वंचित तो विनायक हो जाएगा ।

मुझे तो डर है कि देश कहीं फिर सोने की चिड़िया न बन जाए। विदेशी आक्रमणकारियों की जीभ कहीं फिर न लपलपाने लगे । न बाबा हम तो भले अपने ही हाल में । हम क्यों चलें अन्नाने । हम क्यों भिड़ें , हम तो पसर जाएं यही अच्छा है । बिछ जाएं तो और भी अच्छा , सुखद भविष्य के लिए । अन्नाने के खतरे हजार हैं प्यारे ।



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