कवि हूँ मैं
कविता मेरा काम
एहसासों का ताना बाना
बस यही मेरी पहचान
जीवन से जब थक हार जाता हूँ
निराशा के तम में खो जाता हूँ
इस भीड़ भरे संसार में
खुद को अकेला सा पाता हूँ
तब कवि मैं बन जाता हूँ
प्यार, विश्वास, नेकी और भलाई
अरे! कहाँ गए ये सारे
चंद पैसों की खातिर जब
हर रिश्ते को मरते पता हूँ
तब कवि मैं बन जाता हूँ
कवि हूँ मैं
प्यार, विश्वास, नेकी और भलाई
अरे ! कहाँ गए यह सारे
चंद पैसों की खातिर जन,
हर रिश्ते को मरते पता हूँ
तब कवि मैं बन जाता हूँ
कवि हूँ मैं
जीवन क्या, मरण क्या
मानव जीवन का उद्देश्य क्या
दौलत बड़ी या नेकी बड़ी
इन प्रश्नों में खो जाता हूँ
तब कवि मैं बन जाता हूँ
कवि हूँ मैं
छल - कपट का घनघोर अँधेरा
लालच और नफरत की आंधी
संसार में जब छा जाती है
तब अपने कलम का प्रकाश फैलता हूँ
तब कवि मैं बन जाता हूँ
कवि हूँ मैं
अपने जब छोड़ जाते हैं
स्वार्थ का रिश्ता निभाते हैं
ताने भी मुझपर बरसाते हैं
अकेले ही मैं अश्रु बहाता हूँ
तब कवि मैं बन जाता हूँ
कवि हूँ मैं
जब कोई बच्चा भूख से रोता है
जाड़े में नंगा ही सोता है
इक - इक रोटी के टुकड़े को
कचरे से उठा कर खाता है
आधा मैं वहीं मर जाता हूँ
तब कवि मैं बन जाता हूँ
कवि हूँ मैं
कवि हूँ मैं
कवि हूँ मैं
तब कवि मैं बन जाता हूँ
तब कवि मैं बन जाता हूँ
कविता मेरा काम
एहसासों का ताना बाना
बस यही मेरी पहचान
जीवन से जब थक हार जाता हूँ
निराशा के तम में खो जाता हूँ
इस भीड़ भरे संसार में
खुद को अकेला सा पाता हूँ
तब कवि मैं बन जाता हूँ
प्यार, विश्वास, नेकी और भलाई
अरे! कहाँ गए ये सारे
चंद पैसों की खातिर जब
हर रिश्ते को मरते पता हूँ
तब कवि मैं बन जाता हूँ
कवि हूँ मैं
प्यार, विश्वास, नेकी और भलाई
अरे ! कहाँ गए यह सारे
चंद पैसों की खातिर जन,
हर रिश्ते को मरते पता हूँ
तब कवि मैं बन जाता हूँ
कवि हूँ मैं
जीवन क्या, मरण क्या
मानव जीवन का उद्देश्य क्या
दौलत बड़ी या नेकी बड़ी
इन प्रश्नों में खो जाता हूँ
तब कवि मैं बन जाता हूँ
कवि हूँ मैं
छल - कपट का घनघोर अँधेरा
लालच और नफरत की आंधी
संसार में जब छा जाती है
तब अपने कलम का प्रकाश फैलता हूँ
तब कवि मैं बन जाता हूँ
कवि हूँ मैं
अपने जब छोड़ जाते हैं
स्वार्थ का रिश्ता निभाते हैं
ताने भी मुझपर बरसाते हैं
अकेले ही मैं अश्रु बहाता हूँ
तब कवि मैं बन जाता हूँ
कवि हूँ मैं
जब कोई बच्चा भूख से रोता है
जाड़े में नंगा ही सोता है
इक - इक रोटी के टुकड़े को
कचरे से उठा कर खाता है
आधा मैं वहीं मर जाता हूँ
तब कवि मैं बन जाता हूँ
कवि हूँ मैं
इस काला बाज़ारी ही बस्ती में
हर गरीब को बिकता पता हूँ
भूख बिमारी से तंग आ कर
जब कोई मौत को गले लगाता है
तो थोड़ा हैरान मैं हो जाता हूँ
उसी वक्त मैं कवि बन जाता हूँ
कवि हूँ मैं
विद्या और ज्ञान के प्रकाश की जगह
नशाखोरी को फैलते पाता हूँ
हमारा युवा किस ओर जा रहा
यह देखकर मैं घबराता हूँ
तब कवि मैं बन जाता हूँकवि हूँ मैं
हिन्दू मुस्लिम और सियासत के मुद्दों पर
भारत माता को खून में लथपथ पाता हूँ
आज़ादी आज़ादी सब चिल्लाये थे
आज उसे कोने में रोते पाता हूँ
तो मैं कवि बन जाता हूँ
देखने में खुशहाल देश है मेरा
खुशहाल देश का वासी हूँ मैं
ये कहने में शर्माता हूँ
जब इस गम को छुपा नहीं पता हूँ
किसी को बतला भी नहीं पता हूँ
तब कवि मैं बन जाता हूँ
तब कवि मैं बन जाता हूँ