ये तो इक न इक दिन होना है,
खेत नऐ रिश्तों का अब बोना है।
नियम कायदे सब, है मेरे लिए,
बाहरी आदमी हॅू मुझे बस कोना है।
देख के हाथों की आड़ी तिरछी लकीरे,
कहा उसने, इससे भी बूरा होना है।
आंखों के कोनों से बहता रहता है पानी,
यही सरमाया है, यही तो मेरा सोना है।
छल गया जो अपना बन कर, कह कर,
आज समझा कद में वह बहुत बौना है ।
विक्षिप्त को जि़ंदगी में देखना है क्या क्या,
संसार, गिरना गिराना पाना और खोना है।
खेत नऐ रिश्तों का अब बोना है।
नियम कायदे सब, है मेरे लिए,
बाहरी आदमी हॅू मुझे बस कोना है।
देख के हाथों की आड़ी तिरछी लकीरे,
कहा उसने, इससे भी बूरा होना है।
आंखों के कोनों से बहता रहता है पानी,
यही सरमाया है, यही तो मेरा सोना है।
छल गया जो अपना बन कर, कह कर,
आज समझा कद में वह बहुत बौना है ।
विक्षिप्त को जि़ंदगी में देखना है क्या क्या,
संसार, गिरना गिराना पाना और खोना है।