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दीये चंद जला देना


दीपावली के पावन पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं और यह काव्यात्मक पंक्तियां जो मित्रों के साथ शेयर करें ताकि हम एक सांस्कृतिक अभियान शुरू कर सकें।

रोज रात को कंगूरे पर, तुम दीये चंद जला देना ।
है जिनसे अस्तित्व हमारा,उनको शीश नवा लेना ।।

दीया जले माट्टी की खातिर, जिसने हमें बनाया है।
जिसकी सौंधी खुशबू ने, सांसों को महकाया है।।
आने वाली पीढ़ी को तुम, माट्टी का मान बता देना।
है जिनसे अस्तित्व . . . . . . . . . . . . . . . . . ।।

सदा संस्कृति सागर को, याद किया कर लेना तुम ।
मिटने न पाए संस्कृति, काम करो कुछ ऐसे तुम ।।
दीया उज्ज्वल संस्कृति का, रात को एक सजा लेना ।
है जिनसे अस्तित्व . . . . . . . . . . . . . . . . . . . ।।

बड़े-बुजुर्गों को नतमस्तक, करना नमन जरूरी है ।
उनके संस्कारों,आभारों का, रहना कृतज्ञ जरूरी है ।।
है इस ऋण से कौन उऋण, बात जरा समझा देना ।
है जिनसे अस्तित्व . . . . . . . . . . . . . . . . . . ।।

मात-पिता का दर्जा तो, है दुनिया में सबसे बढ़कर ।
पालक,पोषक,मार्गदर्शक, सदा वे ही हैं सबसे बेहतर ।।
जीवन तुझ पर वार दिया, दिल उनका न दुःखा देना ।
है जिनसे अस्तित्व . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .।।

मुक्त गगन, स्वछंद वतन में, जो तुम आनंद लूट रहे ।
बलिदानों का प्रतिफल उनके, जो फांसी पर झूल गये ।
भगत,राजगुरु,रानी झांसी, बच्चों को बतला देना ।
है जिनसे अस्तित्व . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .  ।।

छोड़ मात-पिता बीवी बच्चे, जा सरहद डेरा डाला ।
मातृभूमि पर जिसने सारा, जीवन अपना था वारा ।।

है सम्मान शहादत का कितना, दीयों से दिखला देना ।
है जिनसे अस्तित्व . . . . . . . . . . . . . . . . . . . ।।

सरदार,शास्त्री के वंशज, कलाम ने हमें सिखाया है ।
जन्मभूमि से बढ़कर स्वर्ग, कभी जाता नहीं बताया है।।
ऐसे गुरुओं की खातिर भी, दीये जरूर सजवा देना ।
है जिनसे अस्तित्व . . . . . . . . . . . . . . . . . . ।।

जलने वाला हर इक दीया, मंदिर जैसा ही होगा।
करने पर जो दे सुकून , काम ये वैसा ही होगा ।।
घर-घर सारे दीप जलाएं, इच्छा यही जता देना।
है जिनसे अस्तित्व . . . . . . . . . . . . . . . . ।।

रोज रात को कंगूरे पर, तुम दीये चंद जला देना ।
है जिनसे अस्तित्व हमारा, उनको शीश नवा लेना ।।
   
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