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मित्र मंडली - 28




मित्रों ,
"मित्र मंडली" का अठ्ठाइसवां अंक का पोस्ट प्रस्तुत है। इस पोस्ट में मेरे ब्लॉग के फॉलोवर्स/अनुसरणकर्ताओं के हिंदी पोस्ट की लिंक के साथ उस पोस्ट के प्रति मेरी भावाभिव्यक्ति सलंग्न है। पोस्टों का चयन साप्ताहिक आधार पर किया गया है।  इसमें  दिनांक 24.07.2017  से 30.07.2017  तक के हिंदी पोस्टों का संकलन है।

पुराने मित्र-मंडली पोस्टों को मैंने मित्र-मंडली पेज पर सहेज दिया है और अब से प्रकाशित मित्र-मंडली का पोस्ट 7 दिन के बाद केवल मित्र-मंडली पेज पर ही दिखेगा, जिसका लिंक नीचे दिया जा रहा है  :-
HTTPS://RAKESHKIRACHANAY.BLOGSPOT.IN/P/BLOG-PAGE_25.HTML
मित्र-मंडली के प्रकाशन का उद्देश्य मेरे मित्रों की रचना को ज्यादा से ज्यादा पाठकों  तक पहुँचाना है। 

आप सभी पाठकगण से निवेदन है कि दिए गए लिंक के पोस्ट को पढ़ कर, टिप्पणी  के माध्यम से अपने विचार जरूर लिखें। विश्वास करें ! आपके द्वारा दिए गए विचार लेखकों के लिए अनमोल होगा।  

प्रार्थी 

राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"
मित्र मंडली - 28  

इस सप्ताह के सात रचनाकार 


वक़्त ज़िंदगी और नैतिकता ...

दिगम्बर नसवा  जी 


अ-नैतिकता का सीधा संबंध मजबूरियों से है और मज़बूरी का संबंध किसी जाती,धर्म,वर्ण या आर्थिक आधार नहीं है। फिर भी मेरा मानना है कि किसी व्यक्ति की अगर जीवन चलाने के लिए मूल आवश्यकता की ही पूर्ति  नहीं हो पा रही हो तो उससे नैतिकता का का उम्मीद रखना बेमानी है। सोचने को मज़बूर करती रचना।

संवर जाने दे

लोकेश नशीने जी 

इनकी ग़ज़ल पढ़ कर एक पंक्ति याद आ गई - "तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है ?" आशिक को महबूब के आँखों में पनाह नहीं मिले तो उसे जीने का मकसद नहीं मिलता। इसी जज्बात को बहुत ही सुन्दर मनोभाव के साथ इस ग़ज़ल में पिरोया है । आप भी आनंद लें।

सूखा पेड़ काटने हेतु आवेदन ...

रवींद्र सिंह यादव जी 

वक्त की मार से कौन बच सका है और जब बात एक सूखे पेड़/ की हो तो उसकी संवेदना को रवींद्र जी की कलम की आवश्यकता है।

तुम और वो.....

सुधा  देवरानी जी 

स्त्री वेदना को उजागर करती सुन्दर रचना, परन्तु अब के परिदृश्य में स्त्रयों की स्थिति बेहतर हुई है और पुरुषों की भी मानसिकता बदली है। मर्म-स्पर्शी रचना।

बिन तेरे सावन

श्वेता सिन्हा जी 

साजन बिना सावन हो तो , सजनी को साजन का इंतज़ार करना ही नियति है। विरह की घड़ी को सुन्दर भावाभिव्यक्ति देती रचना। 

बरखा बहार आयी

कविता  रावत जी 

इस रचना में बरसात के मौसम का सुन्दर शब्द चित्रण किया है, परन्तु जिस तेजी हम कंक्रीट का जंगल उगा रहें हैं  और अपने भौतिक सुख-सुविधा के कारण जो प्रकृति के साथ छेड़-छाड़  कर रहें हैं तो वो दिन दूर नहीं जब हम इस सुन्दर मौसम का कल्पना भी नहीं कर पाएंगे। सुन्दर भावाभिव्यक्ति। 

बात सितारों की करती हूँ !

मीना शर्मा जी 

विपरीत प्रस्थितयों में भी आस ना छोड़ने की बात करती सुन्दर रचना। आप भी आनंद लें।



आशा है कि मेरा प्रयास आपको अच्छा लगेगा ।  आपका सुझाव अपेक्षित है। अगला अंक 07-08-2017  को प्रकाशित होगा। धन्यवाद ! अंत में ....

मेरी एक फोटोग्राफी   :-

फोटोग्राफी : पक्षी 19 (Photography : Bird 19 )




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