मित्रों ,
पुराने मित्र-मंडली पोस्टों को मैंने मित्र-मंडली पेज पर सहेज दिया है और अब से प्रकाशित मित्र-मंडली का पोस्ट 7 दिन के बाद केवल मित्र-मंडली पेज पर ही दिखेगा, जिसका लिंक नीचे दिया जा रहा है :-HTTPS://RAKESHKIRACHANAY.BLOGSPOT.IN/P/BLOG-PAGE_25.HTML
"खेद है कि तकनीकी कारणों से ग्यारहवीं कड़ी उपरोक्त लिंक पर उपलब्ध नहीं है।"
"मित्र मंडली" का इक्कीसवें अंक का पोस्ट प्रस्तुत है। इस पोस्ट में मेरे ब्लॉग के फॉलोवर्स/अनुसरणकर्ताओं के हिंदी पोस्ट की लिंक के साथ उस पोस्ट के प्रति मेरी भावाभिव्यक्ति सलंग्न है। पोस्टों का चयन साप्ताहिक आधार पर किया गया है। इसमें दिनांक 22.05.2017 से 28.05.2017 तक के हिंदी पोस्टों का संकलन है।
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"खेद है कि तकनीकी कारणों से ग्यारहवीं कड़ी उपरोक्त लिंक पर उपलब्ध नहीं है।"
मित्र-मंडली के प्रकाशन का उद्देश्य मेरे मित्रों की रचना को ज्यादा से ज्यादा पाठकों तक पहुँचाना है।
आप सभी पाठकगण से निवेदन है कि दिए गए लिंक के पोस्ट को पढ़ कर, टिप्पणी के माध्यम से अपने विचार जरूर लिखें। विश्वास करें ! आपके द्वारा दिए गए विचार लेखकों के लिए अनमोल होगा।
प्रार्थी
राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"
मित्र मंडली - 21
निभा चौधरी जी की दो कविताएँ
#बसयूँही
प्रेम में परवाना को जलना ही है यह बात लोगों को पता है परवाने को नहीं, उसे तो हर हाल में प्रेम करना है तो वह बस प्रेम को जानता है परिणाम को नहीं।
कोई कैसे__??
भौतिक जगत में सफल जीवन जीने के लिए अधिकतर लोग संवेदनहीन हो कर दूसरों के भावनाओं से खिलवाड़ कर अपनी सफलता को सुनिश्चित करते है। इस भाव को त्रिस्कार करती कविता। सरल ह्रदय वाले को ये सब व्यथित करता और ऐसे लोगों से मिलकर पीड़ा महसूस करता है।
कैलाश शर्मा जी के पद्य
अष्टावक्र गीता - भाव पद्यानुवाद (इकतालीसवीं कड़ी)
अष्टावक्र गीता अद्वैत वेदान्त का ग्रन्थ है।राजा जनक एवं अष्टावक्र के संवाद को अष्टावक्र गीता कहते है। कैलाश जी सरल शब्दों में इस गीता को हिंदी में और अर्थ इंग्लिश में लिखा है। ज्ञान,मुक्ति एवं वैराग्य की कड़ी में यह पोस्ट योगी को समर्पित है। कैलाश जी को इस कार्य के लिए बधाई देता हूँ।
जयंती प्रसाद शर्मा जी की कविता
अफसाना शेख चिल्ली का
संकेतो में पड़ोसी देश को नसीहत और शेखी न बघारने की चेतावनी देती सुन्दर कविता।
दिगम्बर नासवा जी की कविता
वजह ... बे-वजह जिंदगी की ...
वजह ... बे-वजह जिंदगी की तलाश करती सुन्दर कविता। मिलती जुलती हैं सभी की तस्वीरें जो दिखती है ज़िन्दगी के आईने में और सभी बदहवास है आपने जीवन के सफर में।
सुशील कुमार जोशी जी की रचना
कोशिश करें लिखें भेड़िये अपने अपने अन्दर के थोड़े थोड़े लिखना आता है सब को सब आता है
कथनी एवं करनी के फर्क को सिद्दत से महसूस करने पर दर्द होता है। खुद को नंगा, विरले ही कर पाते हैं। धीरे-धीरे भेड़िये बनने की प्रक्रिया में हम सभी हैं, जो दुःखद है ।
मीना शर्मा जी की ग़ज़ल
नुमाइश करिए
ज़िन्दगी की कुछ छोटी-बड़ी ख्वाहिशें, जो कुदरत के नियमों से बंधे है और इस भौतिक युग में जो संभव न हो उसको अपने मन-मर्जी से न चलाने की नसीहत देती सुन्दर ग़ज़ल।
आशा है कि मेरा प्रयास आपको अच्छा लगेगा । आपका सुझाव अपेक्षित है। अगला अंक 05-06-2017 को प्रकाशित होगा। धन्यवाद ! अंत में ....
मेरी दो पेशकश :-