श्रम एवं परिश्रम
माँ ! मुझको तो आसमान में चाँद, गेंद जैसा दिखता है,फिर क्यूँ ? रामू काका को चाँद, रोटी जैसा दिखता है।
माँ ! मुझको तो केवल, साफ़-सुथरा कपड़ा ही अच्छा लगता है,
फिर क्यूँ ? उनको सिर्फ मैला-कुचैला कपड़ा अच्छा लगता है।
बेटा ! परिश्रम एवं श्रम करने में बहुत अंतर होता है,
साक्षर हो कर मेहनत करे जो वो सदा सुखी होता है।
बेटा ! श्रम करने वाले को केवल गेहूँ ही मिलता है,
परिश्रम करने वाले को गेहूँ और गुलाब मिलता है।
सरस्वती माँ की जो आराधना तन-मन से करता है,
विद्या पाकर वो मानव सुखी जीवन-यापन करता है।
माँ ! मैं रामू काका को लिखना पढ़ना सिखाऊंगा,
अज्ञान का अँधेरा उनके जीवन से मिटाऊंगा।
श्रम के बिना किसी को जीवन जीना ही मुश्किल है,
पर परिश्रम करने वालों का भविष्य भी उज्ज्वल है।
नोट-श्रम का तात्पर्य शारीरिक श्रम से होता है
परिश्रम का तात्पर्य जिसमे शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार का श्रम से होता है
गेहूँ हम खाते हैं, गुलाब सूँघते हैं। एक से शरीर की पुष्टि होती है, दूसरे से मानस तृप्त होता है।- "रामवृक्ष बेनीपुरी "
- © राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"